Valentine Day


Velentine Day वेलेंटाइन डे- प्रेम दिवस

                                प्रेम का उत्सव- सदाबहार

Valentine Day


प्रेम- 
इस पृथ्वी का सबसे मधुर शब्द, जिसने सारी पृथ्वी को थाम कर रखा है। कितने कवियों, लेखकों, ने इसे कितने ही रंगों में पुनः पुनः प्रस्तुत किया पर ह बर बार नया-नया ही लगता है। कभी भी हम इससे बोर नहीं होते। 
क्यों ? क्या आपने कभी सोचा !
हम किसी भी चीज के बार बार उपयोग से, उपभोग से, देखने मात्र से बोर हो जाते है पर प्रेम...

प्रेम हमारे मन में सदा ही एक नया उत्साह, उमंग, जोश जगाता है। आखिर क्यो?

वास्तविक प्रेम क्या है 

यह अंतर है भौतिक और दिव्य तत्त्व के बीच का 
प्रेम एक दिव्य तत्त्व है-इस भौतिक लोक का है ही नहीं। हमने अपनी अज्ञानावश अपनी आसक्ति को नाम दे दिया है-प्रेम का।

पर प्रेम प्राकृत होता ही नहीं, दिव्य होता है।
और उसी दिव्य प्रेम की चाहत ही हमारी तलाश है, खोज है, जीवन का लक्ष्य है।
लक्ष्य तो बिलकुल सहीं है
पर...

कहाँ मिलेगा, किसे मिलेगा !

Valentine Day


Gopi Prem Day


हम जहा तलाश कर रहे हैं वह जगह गलत है
हम उसे तलाश कर रहे हैं भोतिक सामानों में, धन में, प्रतिष्ठा में, यश में, कार में, सौन्दर्य में....अनन्तानन्त इस भोतिक जगत के सामानों में.....
वहाँ वह किसी को भी नहीं मिला और न ही मिलेगा
अन्यथा एक गरीब भला उस आनन्द और प्रेम को पाने की कल्पना भी नहीं कर सकता
सोच भी नहीं सकता कि वह प्रेम उसे भी मिल सकता है
फिर तो प्रेम अमीरों के बगीचे का कोमल गुलाब बनकर ही रह जाता । तालों में, तिजोरियों में बंद कर दिया जाता...
फिर कोई गरीब जुलाहा क्या -ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय
यह गाकर लोगों को सिखा पाता ? या 
किसी चमार रैदास की ड्योढी पर कोई राजा अपना सिर झुकाता?

प्रेम की महिमा

यह प्रेम की महिमा है...प्रेम की...
और यह प्रेम है निस्वार्थ, अनन्य प्रेम....
संसारी प्रेम नहीं ..वह तो व्यापार की तरह है
इस हाथ लिया उस हाथ दिया
स्वार्थ पर आधारित, आजमाकर देख लो
        
Gopi Prem Day

हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या

जहाँ आपका स्वार्थ नहीं वहाँ प्रेम हो ही नहीं सकता

किन्तु हम तलाश उसी निस्वार्त प्रेम की करते हैं, कैसा आश्चर्य है....
हम किसी से निस्वार्थ प्रेम  करते नहीं किन्तु दूसरों से आशा उसी निस्वार्थ प्रेम की करते हैं
क्यों...क्यों??
सोचना होगा...
Gopi Prem Day


विशुद्ध प्रेम की चाहत- हमारा स्वाभाव

क्योंकि यह इतनी सूक्ष्म बात है जिसपर हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया

और यही सच है कि यह
हमारी आत्मा का स्वाभाव है
उस दिव्य प्रेम को पाना ही हमारी आत्मा का स्वाभाव है और यही हमारा लक्ष्य है, इसे कोई बदल नहीं सकता..
जितनी जल्दी हम जान लेंगे उतनी ही जल्दी हमारी तकलीफें और दुख दूर हो जायेंगे और 
एक रास्ता सामने खुल जायेगा...


आत्मा दिव्य है उसका विषय भी दिव्य है
यह संसार पंच महाभूत का है यह हमारे पंच महाभूत से बने शरीर को चलान ेके लिये मात्र है 
यह संसार या संसार को कोई भी पदार्थ हमारा लक्ष्य नहीं हो सकता
क्योंकि वह हमें वह प्रेम, सुख आनन्द नहीं दे सकता 
जो हमारी आत्मा चाहती है

वह दिव्य प्रेम -आध्यात्मिकता से ही मिलेगा


आज कल या करोड़ों वर्ष बाद जब भी आप इस बात को समझ जायेंगे आपकी आध्यात्मिक यात्रा तभी उसी छण आरम्भ हो जायेगी
संसार में केवल माता के शिशु के प्रति प्रेम में निस्वार्थता की एक झलक मिलती है और इसी से शिशु का पालन माँ कर पाती है। 
इस पृथ्वी में संत महापुरुष ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जो किसी से निस्वार्थ प्रेम कर सकते हैं
उनके लिये तन, मन, और यहाँ तक कि अपने प्राण भी दे देते हैं क्यों 
क्योंकि
उन्होंने उस प्रेम को पा लिया है जिसे पाकर फिर कुछ भी पाने का चाह नहीं रह जाती
परम तृप्ति की अवस्था
परमात्मा को पाकर वह आत्मा -महात्मा बन जाती है
और फिर केवल दूसरों के  लिये वह जीवन समर्पित हो जाता है
जिसे अपना लक्ष्य मिल गया वही दूसरों को मार्ग दिखा सकता है

हमें उनकी शरण में जाना होगा...
मार्ग वही दिखायेंगे
अन्यथा हम भटतके ही रहेंगे..
च्वाइस हमारी है...

Happy Gopi Prem Day


Valentine Day


Comments