धीरे धीरे रे मना-Kabir Das Ji

Ritu aane par hi fal milta hai


धीरे धीरे रे मना धरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा रितु आये फल होय।।

यह मैं अपने आप से कह रही हूँ...

जब मैं कुछ निराश हो जाती हूँ और कुछ समझ नहीं आता क्या करूँ या मैं आखिर क्या कर रही हूँ...जौ कर रही हूँ उसका अर्थ है...

ये प्रश्न मुझे परेशाना करते हैं...मैं अपने आप से कहती हूँ...धीरे -धीरे रे मना...

यह दोहा कबीरदास जी ने मुझ जैसे अधीर लोगों के लिये ही लिखा होगा...मुझे तो यह प्रतीत होता है कि अधिकाँश लोग मेरे जैसे ही अधीर और जल्दबाज हैं किन्तु जरा अपने आसपास की प्रकृति को ही देख लें तो हमारी अधीरता समाप्त हो जाये।

प्रकृति में सबकुछ कितना सुन्दर, व्यवस्थित है । ये रितुएँ, ये मौसम, जीवन सभी में एक तालमेल और सामन्जस्य है। हर एक के लिये समय है, जगह है, अवसर है।

क्योंकि प्रकृति उदार है, धीरवान है...

और मानव सबकुछ अभी ही पा लेने की आकुलता...लालच..

क्योंकि हम लोभी हैं, अनुदार हैं...

हम सबकुछ पा सकते हैं यदि हममें धैर्य है और हम एक छण में सबकुछ पा कर भी खो सकते हैं अपनी अधीरता से। अविश्वास से।


तो विश्वास रखें..

रितु आये फल होय।

और पानी सीचना बंद न करें यानी अपने प्रयास में कमी न आने दें 

धन्यवाद 🙏

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