Chaitanya Mahaprabhu- Gourang Mahaprabhu

 

Chaitanya Mahaprabhu-Gourang Mahaprabhu-Gour
 Purnima

Introduction

Birth and childhood

भारत के पश्चिम बंगाल में आज से लगभग 550 वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था। नवद्वीप नामक एक छोटे से ग्राम में होली की पूर्व सन्ध्या को इनका जन्म हुआ । अतः होली की पूर्व संध्या को ही गौर पूर्णिमा मनाई जाती है।उनके पिता का नाम पंडित जगन्नाथ मिश्र और माता का नाम शचीदेवी था। नीम के वृक्ष केनीचे इनका जन्म होने के कारण इन्हे प्रेम से निमाई भी बुलाते थे।

 निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था।  बचपन में निमाई का पढ़ने-लिखने में मन नहीं लगता था। शैतान लड़कों के वह नेता थे। किन्तु विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न थे।

युवावस्था में चैतन्य ने भगवान कृष्ण की आराधना करना शुरू कर दिया और असामान्य रूप से उच्च स्तर की बुद्धि का प्रदर्शन किया. धीरे-धीरे उनके ज्ञान की चर्चा चारों ओर होने लगी। लोग उन्हें 'निमाई पंडित' कहने लगे।

जब चैतन्य 16 साल के थे तब उन्होंने अपना खुद का स्कूल शुरू किया. जिसने कई विद्यार्थियों को आकर्षित किया. चैतन्य का ज्ञान इतना महान था कि उन्होंने एक बार वाद-विवाद में केशव कश्मीरी नामक एक सम्मानित और विद्वान व्यक्ति को हरा दिया था. 

इनके सुन्दर रूप के कारण ये गौराँग नाम से जाने जाते हैं। गौराँग महाप्रभु ने युवावस्था में ही मात्र 24 वर्ष की आयु में सन्यास धर्म को अपना लिया । ये विवाहित थे और सुकुमार पत्नि का त्याग कर इन्होंने कठोर सन्यास धर्म को अपनाया तथा ग्रृहत्याग कर सम्पूर्ण भारत का परिभ्रमण किया। ये श्रीकृष्ण के एक महान भक्त हैं और सारा जीवन इन्होंंने अपने आचरण द्वारा श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार किया।

Propagation of Shri Krishna Bhakti

गौरांग महाप्रभु ने सम्पूर्ण विश्व में संकीर्तन धर्म का प्रचार किया। हरि बोल हरि बोल का मधुर कीर्तन करते हुए ये सदा ही दिव्य भाव में रहा करते थे। इन्होंने ही हरे राम महामंत्र को सम्पूर्ण विश्व में प्रचारित प्रसारित किया। नदिया के श्रीवास अँगन से आरम्भ हुआ यह महामंत्र शीघ्र ही सम्पूर्ण भारत और फिर विश्व में छा गया।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

उनका एक और प्रिय संकीर्तन है-

हरि हरि बोल बोल हरि बोल

मुकुन्द माधव गोविन्द बोल।

केशव माधव गोविन्द बोल।

हरि हरि बोल बोल हरि बोल।

ये श्रीकृष्ण का ही भक्त रूप हैं जो जगत को भगवान की भक्ति कैसे की जाती है, इसकी शिक्षा देने अवतरित हुए थे।

उन्होंने कलियुग के जीवों के मंगल के लिए ही उन्हें श्रीकृष्ण प्रेम प्रदान किया है, वह सांसारिक वस्तु प्रदाता नहीं बल्कि करुणा और भक्ति के प्रदाता हैं। चैतन्य महाप्रभु ने संस्कृत में शिक्षाष्टक की रचना की, अर्थात् केवल 8 श्लोकों की रचना की। वेद-शास्त्र के सिद्धात से सिक्त ये 8 श्लोक हैं जिनमेंं भक्ति के सम्पूर्ण ज्ञान को समाहित किया गया है। शिक्षाष्टक केवल वैष्णवों में ही नहीं वरन सम्पूर्ण भक्त समाज में एक सम्मानित ग्रंथ माना जाता है।

आश्लिष्यवा पादरतां पिनष्टुमाम् अदर्शनान् मर्महतां करोतुवा।

यथा तथा वा विद् धातु लम्पटो मत् प्राणनाथस्तु स एव ना पराः।।

 Shikshashtaka [8 precious couplets written by Chaitanya Mahaprabhu]

भज गौरांगो भज गौरांगो भज गौरांगेर नाम रे

उडीसा के जगन्नाथ पुरी धाम में इन्होंने अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष व्यतीत किये। इनकी अंतिम कुछ वर्षों की अद्भुत लीलाएँ इनके अनन्य भक्तगणों ने- स्वरूप दामोदर, राय रामानन्द आदि ने एक पुस्तक में लिपिबद्ध कर रखीं थीं। ये लीलाएँ उनके श्री कृष्ण विरह में दिव्योन्माद की अति करुण अवस्था का वर्णन करती हैं।


Shri Krishna Chaitanya

Goudiya Granth

Chaitanya Charitamrita: The Life history and work of Shri Mahaprabhu

गौरांग महाप्रभु पर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं।

श्री चैतन्य चराितमृत, श्री चैतन्य महाप्रभु के जीवन पर आधारित एक महान ग्रंथ है जिसकी कृष्णदास कविराज ने 1496 ई. में की थी। यह सर्वप्रथम बंगाली भाषा में लिखी गयी बाद में इसमें संस्कृत के श्लोक डाले गये। यह एक विशाल ग्रंथ है इसमें श्री चैतन्य महाप्रभु जी की जीवनी के साथ-साथ उनके भक्तों के चरित्रों का भी वर्णन है। इसे तीन भाग में प्रकाशित किया गया है। आदि लीला-मध्य लीला-अन्त लीला। इसमें इनके सम्पूर्ण 48 वर्षों के जीवनकाल का सुन्दर चित्रण है।

यह सैद्धांतिक दृष्टिकोण से श्री चैतन्य चरितामृत एक महान वैष्णव ग्रन्थ है समस्त वैष्णव समाज इसकी पूजा करता है और इसे अति पवित्र मानता है।

गौराँग महाप्रभु

Chaitanya Bhagwat

This precious granth is written by Vrindavan Das Thakur. This is one of the main granth of Goudiya Sampradaya.

Shad Goswamipad

श्री स्वरूप गोस्वामी, 
श्री रूप गोस्वामी,  
रघुनाथ दास गोस्वामी,
श्री रघुनाथ भट्ट, 
श्री गोपाल भट्ट, 
श्री जीव गोस्वामी पाद।

गौराँग महाप्रभु


They created some really precious scriptures of Vaishnav Bhakti 

चैतन्य महाप्रभु ने ही अपने षड् गोस्वामिपाद द्वारा लुप्त श्री वृन्दावन धाम को पुनः स्थापिक किया था।


धन्यवाद


Other Important links:
1. https://priyadasi.blogspot.com/2021/02/shri-ram-chandra-kripalu-bhajman.html

2. https://priyadasi.blogspot.com/2021/02/story-of-parijat-tree-and-flower.html

Comments